Monday, November 21, 2016
पुराना क़स्र
Monday, October 24, 2016
मुझको अकेला कर दिया
Monday, September 26, 2016
देख
ख़्वाबों में मसरूफ़ है तू पर, मेरी ये बेदारी देख
मेरी रातों की स्याही में रंग ए खूं को तारी देख
देख तू मेरी ग़ुरबत को और मेरी मुर्दा आंखों को
मेरी मुर्दा आँखों से तू अब भी आंसू जारी देख
तुझको देने को है मेरे पास बता क्या? कुछ भी नहीं...
तुझसे बातें, तेरी यादें, मेरी दौलत सारी देख
मेरी जान के साथ साथ अब सारे लफ्ज़ फ़ना मेरे
इनको इक इक करके जाते, तू अब बारी बारी देख
एक तेरी तस्वीर ज़हन में, थी अपनी सारी दौलत
आज यहाँ पर खेल खेल में, हमने वो भी हारी देख
गिर्द मेरे हर जा हर दम इक शोर सुनाई देता था
ख़ामोशी भी देख ले अब तू, आकर लाश हमारी देख
Sunday, August 21, 2016
फिदायीन
Thursday, August 18, 2016
Love
When the mind saw no hope at all...
What moved him on was the crazy heart.
It saw oases when there was none,
And he walked through the burning sands.
Wherever he has reached today...
It was thanks to the insane love.
The irony is that the insane love
Now shows a desert in the oasis...
Love was his only weapon ever...
And now love becomes his final fall.
- Rishiraj
Sunday, August 14, 2016
JIHADI?
लुटते थे सामान-ओ-असबाब मेरे
क़ातिल ने जब मुझको घेरा था तनहा
थी हर रात तनहा, सवेरा था तनहा
थीं साँसें भी मेरी क़ातिल के बस में
जो गुज़री थी मुझपर मेरे कफ़स में
जो आप देखते तो नहीं पूछते फिर
कैसे है हाथों में शमशीर आखिर
मैं क्यों हूँ अकेला मैं कैसे हूँ वाहिद
क्यों हूँ मैं बाग़ी मैं क्यों हूँ मुजाहिद
Saturday, July 23, 2016
अहले अज़ा
Saturday, July 16, 2016
तहरीर
Tuesday, July 5, 2016
असलियत
तयशुदा शुरुआत और अंजाम है
इसमें कोई भी जगह तेरी नहीं
इसलिए ये हर तरह नाकाम है
क्या सबब है इसकी मज़बूती का अब
बेवजह ये इसका इस्तेहकाम है
असलियत मेरी बहुत खामोश है
क्योंकि इससे दूर तेरा नाम है
तू नहीं है तो मुझे अय यार सुन
हर सहर इक बेकसी की शाम है
पढ़ रहा हूँ कुछ दिनों से बारहा
तेरा जो मेरे लिए पैगाम है
कुछ तो अब इस ज़ीस्त का हासिल मिले
जाने ये किस बात का हंगाम है
देख मेरी असलियत को तोड़ दे
शायद इसके बाद ही आराम है
- ऋषिराज
Friday, June 10, 2016
I AM NOT THE MUSIC
Imagine yourself lost in a burning desert.
Imagine the winds slamming...
against all the nothingness of the desert...
And you covering yourself in your garb
trying to make some sense of the dunes...
Dunes that change places
as winds change their paces...
And in that moment you hear a great thunder.
A thunder that means death in the sands...
You hear the sound of many waters,
you see the lightning's bolt
blazing like some ancient sword...
That moment is me. That sound is me.
I am not the music that you like.
Friday, June 3, 2016
फ़क़ीर-ए-इश्क़
किले बर्बाद करता और पत्थर छोड़ जाता है...
जहां जाता है खूँ का इक समंदर छोड़ जाता है
मोहब्बत तेरी गुज़रे है मेरे दिल से, मेरे कातिल,
के जैसे लूट कर शहरों को लश्कर छोड़ जाता है
तेरी यादों को मैं लेकर कहीं भी साथ जाता हूँ
कासा अपना कब दरवेश घर पर छोड़ जाता है
ये मेरे इश्क़ की दौलत है ऊंची क़स्र-ए-सुल्तां से
जो अपनी सारी दौलत को यहीं पर छोड़ जाता है
कैसा है फ़क़ीर-ए-इश्क़ तेरे नाम का, हैदर?
मैं उसको जो भी देता हूँ वो अक्सर छोड़ जाता है
Friday, May 6, 2016
मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का
Sunday, April 24, 2016
दोस्ती
कौन जाने अब कहाँ से गुज़रेगी
छोड़ दी हम ने अब गली तेरी
ख़ाक ही अब वहां से गुज़रेगी
ख़ौफ़ है हर तरफ़, जो है चर्चा
होके मौत कारवॉं से गुज़रेगी
हैं तेरे आज यहाँ क़स्र ओ महल
कल इक नदी यहाँ से गुज़रेगी
दुनिया ऐसी है दोस्त, जाने कब
ये जान अपनी जहॉँ से गुज़रेगी
Sunday, April 10, 2016
वो हमें सिखलाता है लिखना कहानी
Tuesday, April 5, 2016
मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
नहीं अपने दिल को जो बीमार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो करते हैं बातें ज़मी आसमाँ की, जो करते हैं क़िस्सा-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत
हदों को मगर जो नहीं पार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो लिखते हैं अलफ़ाज़ आह-ओ-फुगाँ के, जो बनते हैं आशिक़ रू-ए-क़मर के
दामन को लेकिन नहीं तार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
तारीफ़ करते हैं कुत्ब-ओ-कलम की, जो करते हैं बातें भी रंज-ओ-अलम की
हैं अपनी मुहब्बत को बाज़ार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो चलते हैं हमराह बनकर हमेशा, मगर साथ चलके भी हैं दूर सबसे
यारों को भी जो नहीं यार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
Monday, April 4, 2016
नींद और ख़्वाब
छू आए फिर उस मंज़र को
जिस मंज़र को जब भी देखा
जाने क्या दिल पर गुज़री है
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
है साफ़ कहीं है धूल जमी
पर फिर भी ये तन है लरजाँ
जाने क्या इस पर गुज़र गई
हम ख़ाबीदा थे कुछ कुछ तो
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
हर तरफ़ धुआँ सा बिखरा था
हर तरफ़ धुआं सा बिखरा है
उस काली जगह पर जाकर
जाने क्या मंज़र देख लिया
तूफाँ सा दिल से गुज़रा है
कुछ कहर सा सर पर टूटा है
कुछ दर्द भी है, कुछ आंसू भी
कुछ धुआँ भी है और कोहरा भी
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
Tuesday, March 29, 2016
PRAY MORE FOR PARIS
लहू में डूबी दुनिया है पर कुछ ख़बर-ए-हालात नहीं
कितने तूफाँ आए और फिर कितने तूफाँ चले गए
पर खून में अपने लोगों के कुछ पेरिस वाली बात नहीं
Friday, March 18, 2016
ये गलियाँ सारी खाकशुदा
Friday, March 4, 2016
SAIFULLAH AL-MASLUL
are trespassed by your war machines.
Everyday and every night…
I am shaken by your boots.
Your boots that walk to and fro…
on the hallowed grounds within my head,
violating the sanctity.
The tombs of heroes in my heart…
are stepped upon by trespassers;
and I... here… powerless…
raise my hands to the sky…
begging…
If life is the one that castigates…
then make me life. I offer you…
my whole being inside out.
Crush me and then rebuild me
as a walking weapon for the weak…
Take me, break me;
then remake me.
I yearn to be the hand of justice
that never shakes, that never trembles.
Make me your unsheathed sword, heavens…
that paints justice with the color red.
Or make me the tray on which is served…
every trespasser's severed head.
Tuesday, February 23, 2016
ख़तरा
घर को अब है घर से ख़तरा
सर ज़बान के ख़तरे में था
अब ज़बान को सर से ख़तरा
राह में खो जाना है बेहतर
राही को रहबर से ख़तरा
रात को सोना देख भाल के
चादर से, बिस्तर से ख़तरा
यारो दुश्मन क़ातिल सारे
नीचे और ऊपर से ख़तरा
घर जाएं या बाहर घूमें
अंदर से, बाहर से ख़तरा
रात की रात सफ़र है अपना
हमको नूरो सहर से ख़तरा
बशर बनाता मौत है अपनी
उसको अपने हुनर से ख़तरा
Thursday, February 4, 2016
MANQABAT
हर जुर्म गिनाया जाएगा
जब तेरा अद्ल ए आली में
सर गिरेगा कट के थाली में
गूंजेंगे ठहाके उन सब के
जो गिरे हुए हैं घुटनों पर
और देगा सुनाई चार तरफ़
बस हवा में नारा ए हैदर
हर क़स्र हिलेगा ज़ालिम का
हर इल्म यहां हर आलिम का
न जान समझ कुछ पाएगा
हिसाब ए आख़िर सब तेरा
जब तुझको सुनाया जाएगा
सर होगा तेरा धरती पर
और देगा सुनाई चार तरफ़
बस हवा में नारा ए हैदर
Sunday, January 24, 2016
YOUR MIGHT
I was born with its image in me and one that was of war.
Your deeds might go without response,
While you shiver with power…
I am living in a kind of furnace with flames all around,
forging blades to serve me one day in the battleground.
If there is no justice here, even then, I'll rise.
I'll rise and I'll butcher you like in some slaughterhouse.
In my mind it'll be for justice, but you may not understand.
For you I'll say "it's for fun!"; and I'll drink one to your plight.
I'll butcher you before your own; while you display your might.
Thursday, January 14, 2016
मुर्दे
ये ख़ाक-ओ-धूल ही थी हर घड़ी तक़दीर मुर्दों की
हम सब हैं घरों में क़ैद और हाथों में मोबा-इल
ख़बर ए हाल अखबारों में, और तस्वीर मुर्दों की
जिन्हें था ख़्वाब ए आज़ादी वो कब के हो गए मुर्दे
और हम हैं ख़ाक पर बैठे, लिए ताबीर मुर्दों की
हमसे पहले जो आए, वो जाने कह गए क्या क्या
हम सब पढ़ रहे हैं आज तक, तहरीर मुर्दों की
है इक तरतीब लाशों की, कि अब हैं हर तरफ़ मुर्दे
कि बोला था कहीं पर सच, थी ये तकसीर मुर्दों की