Monday, June 29, 2015

शंकर शंकर

चारों ओर है तेरा नारा
तू है अपना एक सहारा
दुनिया सारी एक समन्दर
नाम है तेरा एक किनारा
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

तू है तो फिर और नहीं कुछ
मन है मन्दिर और नहीं कुछ
तेरे नाम के और सिवा क्या
सर है हाज़िर और नहीं कुछ
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

हम पर रहमत काम है तेरा
आगाज़ो अंजाम है तेरा
अपने अकेलेपन का साथी
और नहीं बस नाम है तेरा
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

ये फरियाद भी तू ही तू है
हमको याद भी तू ही तू है
तू है अपनी साँस का चलना
उसके बाद भी तू ही तू है
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

Saturday, June 27, 2015

VICTORY

फिर से होगा सामना परवाज़ का ज़ंजीर से
फिर कटेंगे सर मगर जीतेगा ख़ूँ शमशीर से

Sunday, June 14, 2015

CORE

In the face of endless suffering,
he who chooses to stay and fight
is like an army that holds a fort;
fights and dies in the name of love.

The one who takes his own life
is like one of those old explorers
who move away from what is known
and sail their ships to distant seas.

Saturday, June 13, 2015

ग़ज़ल 7

पहले कभी न कर सका अबकि बार कर
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा इंतज़ार कर

लेके तेग़ हाथ में तू देखता है क्या
आँख मिला हाथ उठा एक वार कर

कोई नहीं बचा जो तेरे पेश आ गया
नेज़ों पे सर चढ़ा दिए हैं सबको मार कर

मुझसे की थी बात कभी उसको मत भुला
यूँ सुपुर्द ए खाक़ न अपना क़रार कर

तुझसा नहीं अहदशिकन देख तेरा दोस्त
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा ऐतबार कर

देख ली फिर से मेरे दिल की हकीक़त
सीने में मेरे सैंकड़ों नश्तर उतार कर

देख कहीं कट न जाएँ आशिकों के सिर
क़ातिल न आने पाए फ़सीलों को पार कर

मैं आ रहा हूँ पर ये इक अहसान है मेरा
ज़ाहिर न मुझपे अपना कोई अख़्तियार कर

सर रख दिए हैं अपने इस शमशीर पे तेरी
अब कुश्तग़ाने इश्क़ में अपना शुमार कर 

Wednesday, June 10, 2015

ग़ज़ल 6

हम पे ये यलग़ार तुम्हारी
आज पड़ेगी तुमको भारी

 नहीं बचेगा कोई लेकिन
जंग रहेगी अपनी जारी

 पागलपन हम दीवानों पे
सहरो शाम रहेगा तारी

 अाज यहाँ पर जल जाएंगे
परवाने सब बारी बारी

 लश्कर तेरा थर्राएगा
गूँजेगी आवाज़ हमारी

 ख़ून बहेगा रेत के ऊपर
हवा करेगी बात हमारी

Monday, June 8, 2015

ग़ज़ल 5

हम सब मुरीद हो गए हैं इन्तज़ाम के
क्या ख़ूब बन्दोबस्त हैं ये क़त्ले आम के है महफ़िले लईन पुर-अंदाज़ यहाँ पर ख़ंजर चलेंगे अब यहाँ हर एक नाम के अब रह गए हैं आप और ये आप की बातें जाने कहाँ चले गए सब दोस्त काम के है मौत ये किसकी जिसे तुम जश्न हो कहते मानी हमें बताओ भी इस दौर ए जाम के अब दिन की राह देखते ही बीतती है रात दिखते हैं सहर में भी अब रंग शाम के