Tuesday, February 23, 2016

ख़तरा

दिल को ख़ुद दिलबर से ख़तरा 
घर को अब है घर से ख़तरा 

 सर ज़बान के ख़तरे में था 
अब ज़बान को सर से ख़तरा 

 राह में खो जाना है बेहतर 
राही को रहबर से ख़तरा 

 रात को सोना देख भाल के 
चादर से, बिस्तर से ख़तरा 

 यारो दुश्मन क़ातिल सारे 
नीचे और ऊपर से ख़तरा 

 घर जाएं या बाहर घूमें 
अंदर से, बाहर से ख़तरा 

 रात की रात सफ़र है अपना 
हमको नूरो सहर से ख़तरा 

 बशर बनाता मौत है अपनी 
उसको अपने हुनर से ख़तरा 

Thursday, February 4, 2016

MANQABAT

इलज़ाम सुनाया जाएगा
हर जुर्म गिनाया जाएगा
जब तेरा अद्ल ए आली में
सर गिरेगा कट के थाली में
गूंजेंगे ठहाके उन सब के
जो गिरे हुए हैं घुटनों पर
और देगा सुनाई चार तरफ़
बस हवा में नारा ए हैदर
हर क़स्र हिलेगा ज़ालिम का
हर इल्म यहां हर आलिम का
न जान समझ कुछ पाएगा
हिसाब ए आख़िर सब तेरा
जब तुझको सुनाया जाएगा
सर होगा तेरा धरती पर
और देगा सुनाई चार तरफ़
बस हवा में नारा ए हैदर