Friday, May 6, 2016

मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का

मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का 
मुंतज़िर अब है नहीं ये दिल किसी पैगाम का

हैफ़ बस कुछ देर पहले हमको था रुखसत किया  
है नहीं नाम ओ निशाँ भी अब कहीं बेनाम का 

इक तरफ है लाश बेसर इक तरफ गोर ओ कफ़न 
ग़र सभी हैं बेमकां तो क़स्र किसके काम का 

हम लटकती तेग़ को हैं देखते लैल ओ निहार 
रात दिन पढ़ते हैं नोहा आपके अंजाम का 

है अँधेरी रात और बेनूर है अब हर शमा 
चल रहे हैं नूर लेकर फिर भी उसके नाम का