Monday, July 27, 2015

हमसफ़र

लोग आगे बढ़ गए, अब रहगुज़र का साथ है
रात की है तीरगी, तेग़ ओ तबर का साथ है

साथ है कोई नहीं, और राह भी है गुमशुदा
बारहा होते निहाँ, धुंधले क़मर का साथ है

हमसफ़र कहते हैं किसको, दोस्त किसका नाम है
साया है बस साथ अपने और सफ़र का साथ है

अब कहाँ उसका तसव्वुर भी नहीं है दूर तक
जिसको कहते थे कि ये शामो सहर का साथ है

ठीक है के नाम है बेहद तेरी तलवार का
लेकिन अपना मौत से आठों पहर का साथ है

Sunday, July 19, 2015

शमशीर

तेरे ही नाम की शमशीर है ये
कि तेरे इश्क़ की ज़ंजीर है ये

है सारे बेजुबानों की जुबां जो
मेरे ही ख्व़ाब की ताबीर है ये

तेरा ही नाम है लुत्फ़ ए इबादत
मुझे नाम ए अली, शब्बीर है ये

ये तेरे नाम का वाहिद सहारा
ये है इस्मे खुदा, हर पीर है ये

मेरी हर इब्तेदा है नाम तेरा
तेरे ही नाम पे आखीर है ये 

Wednesday, July 15, 2015

चूड़ियाँ

है दिखाया वक़्त ये हमको अदब ने दोस्तों
पहन लीं हैं चूड़ियाँ अब आप सब ने दोस्तों

क्या करें हम बात अब कैसी शहादत कौम की
खा लिया है आपको ज़र की तलब ने दोस्तों

उठ के आओ चूड़ियाँ तोड़ो उठाओ तेग़ अब
कर दिया है हम पे हमला अब ग़ज़ब ने दोस्तों

फ़िक्र ही करनी है तो फ़िक्रे हक़ीक़ी क्यों नहीं
घेर रक्खा है तुम्हें फ़िक्रे अजब ने दोस्तों

हाँ हमें पकड़ाई है बंसी अगर भगवान् ने
हमको बाज़ू भी दिए हैं अपने रब ने दोस्तों

Tuesday, July 7, 2015

एक परवाना बचा

टूटे परों के ढेर में ये एक परवाना बचा
दीवानों के क़त्ल में बस ये दीवाना बचा

आज टूटेंगी सभी, ईमारतें ये झूठ की
छोड़ मेरी फिक्र तू अपना बुतख़ाना बचा

पूरे घर की आग को, अब बुझा सकता है कौन
मयकदे को भूल जा, अपना पैमाना बचा

सब परिन्दे उड़ गए, बाग़ तनहा रह गया
पेड़ भी सब कट गए, और वीराना बचा

अब नहीं कोई दोस्ती, और न कोई इश्क़ है
बात भी बाक़ी नहीं, और न अफ़साना बचा

Saturday, July 4, 2015

ताराज 3

अपना घर भी ख़ाक़ है, करबला भी ख़ाक़ है
वो वली भी नोक पर, ये समा भी ख़ाक़ है

क्या लिखूँ मैं तेरा नाम, क्या करूँ मैं तेरी बात
तेरा हुस्न बग़ुज़र्द, हर अदा भी ख़ाक़ है

जो बला भी आएगी, ख़ुद भी हार जाएगी
सब कहेंगे ख़ाक़ हम, और बला भी ख़ाक़ है

इक हुसैन हैं वली, और जो भी हैं सभी
बात उनकी झूठ सब, और ख़ुदा भी ख़ाक है

क़त्ल कर दिया उसे, अब यहाँ है क्या बचा
ज़मीनो आसमाँ हैं ख़ाक़, और हवा भी ख़ाक़ है

इस नशे में बात क्या, जाम की बिसात क्या
मुझको जाम है ज़हर, मयक़दा भी ख़ाक़ है

एक मुझको याद वो, वो नहीं तो फिर मेरी
इब्तेदा भी ख़ाक़ है, इन्तेहा भी ख़ाक़ है

ताराज 2

रहा नहीं सरपरस्त हो गया ताराज घर
एक बच्चा रो रहा गोद में ले माँ का सर

लेके जाना लाश तक था नहीं बिलकुल सहल
और फिर ये पूछना क्या यही है वो बशर

माँ तू मेरे बाज़ू देख ये सहारा अपना देख
कुछ नहीं होगा मुझे देख माँ तू ग़म न कर

लुट गईं हैं चूड़ियाँ और पैराहन के रंग
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं देख तेरा हमसफ़र

अपने घर में ख़ाक है और दुनिया में कहीं
हो बला से गर्द हो या कि हो शम्स ओ क़मर

Thursday, July 2, 2015

ताराज 1

ख़ून आँखों से रवाँ है ख़ाना-ए-ताराज में
ज़ुल्मो दहशत हमपे जारी क़ातिलों के राज में

दिन हमारे मातमी और सुर्ख़ हैं रातें हमारी
दिन हमारे बा-अज़ा हैं, रात भर है अश्क़बारी

ख़ंजरों के साए में भी नाम ले लेकर चले
हम शहीदे पाक़ का पैग़ाम ले लेकर चले

हमने उठाया था हलफ़ बेकसी की लाश पर
रो रहे हैं आज तक अपने वली की लाश पर