Sunday, December 27, 2015

SWORDS

Elements give up their differences.
They come together and shake hands,
bow down to each other and fuse with them.
Other elements, all special...
Give Iron their allegiance.
And all of them are lost forever...
That is how steel is born.
Steel is then thrown in a furnace;
it almost crosses its melting point.
When it's hot and burning red...
and there's no hope that it would live,
something begins taking shape.
That is one way swords are forged. 

अनासिर भूल के अपनी अदावत,
मिलके आपस में हैं चलते,
इक दूसरे के आगे झुकते और हो जाते हैं एक।
खास हों अनासिर सारे लेकिन
बैयत देते हैं लोहे को।
और खो जाते हैं मिलकर उससे
ऐसे ही होता है फ़ौलाद पैदा।
फ़ौलाद को तब भट्टी है मिलती,
और पिघलने की कगार पर
जब सुर्ख़ जलता है जिस्म उसका...
और उम्मीदें ख़ाक़ हो जातीं हैं बचने की,
तब शक़्ल लेता दिखता है कुछ...
ऐसे तराशी जातीं हैं शमशीरें।

Friday, December 25, 2015

खुश हैं


बस शहीद ही मर के खुश हैं

बाकी सब तो डर के खुश हैं



हाय ज़माना कैसा आया...

कातिल दुनिया भर के खुश हैं



कोई बात जो इनकी सुन ले

शायर मुजरा करके खुश हैं



फौजी सरहद पर हैं मरते

सांप हमारे घर के खुश हैं



नीचे क़त्ले आम सही पर

आक़ा सब ऊपर के खुश हैं



सब के सब ये भूख के मारे

सामने तेरे दर के खुश हैं



तेरी गली में मौत बिछी है

फिर भी यार गुज़र के खुश हैं

Tuesday, December 15, 2015

या हैदर

तू क्या लगाता घात है
मुझपर अली का हाथ है

बुत सभी तेरी तरफ़
अल्लाह मेरे साथ है

मेरे साथ इस्मे मुर्तज़ा
इक ढाल सहरो रात है

अब्बास के परचम तले
महफ़ूज़ ये हयात है

इश्के हैदर है मुझे
जो बात है वो बात है

Wednesday, November 25, 2015

BLACK SHEEP

I get up here to see the dawn
Everyday just with a hope
Someone else might be awake
But the world is on a dope

Everyday I'm rendered sad
In the herd there's no black sheep
Who were awake are still so
The ones asleep are but asleep

Friday, November 20, 2015

PRAY FOR PARIS

आँखें खोलो, ख़ून के धब्बे हैं हर दीवार पे
देखो देखो सारी दुनिया चल रही अंगार पे

खूब चिल्लाते हो तुम जब भी फ़िरंगी खूँ बहे...
और ख़ामोशी तुम्हारी उसके हर इक वार पे

फ्रांस के परचम पे तुम अपनी रगड़ते नाक हो
और मुल्कों के नहीं बच्चे भी दिखते दार पे

और करलो कुछ इबादत अमरिकी साहिब की तुम
हाजिरी जाकर लगा लो चौखट-ए-दरबार पे

चुप रहो, कुछ भी न बोलो, हुक्म है साहिब का ये
एक दिन रोओगे सुबहो शाम अपनी हार पे

Friday, October 30, 2015

बेअमाँ


छोड़ कर मुझको यहाँ
सब हो गए हाफ़िज़ निहाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

सब ख़ाक है उनके बिना
अब वो कहाँ और मैं कहाँ
कोई नहीं मेरा पासबाँ
हैं हर तरफ़ खंजर सिना
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

है हर तरफ रेग-ए-तपाँ
हैं मौत की परछाइयाँ
है मश्क को छूना मना
अब कौन है मेरा यहां
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

नाम उनका, ये ज़बाँ
थे वो ही मेरे दो जहाँ
था उनका चेहरा आईना
राह-ए-मकान-ए-लामकाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

हर तरफ़ हैं आँधियाँ
हैं रेत के झोंके रवाँ
और चल रहा हूँ बेनिशाँ
मैं नातवाँ, तश्नादहाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

Monday, October 26, 2015

नाम

अगर हम उसे बुलाएंगे हमें यकीन है कि वो आएगा
ये जो नाम अपने लबों पे है ये उसी का एक नाम है
इसे गर हवाओं में ले लिया तो खो न जाए ये कहीं
न हवाएं अपनी दोस्त हैं न ये रात ही है बावफ़ा
ये नाम है मेरे दोस्त का इसे लेके क्यों करूँ आम मैं
यहाँ हर तरफ है मौत बस यहाँ कैसे लूँ तेरा नाम मैं
यहाँ ज़ीस्त पाश पाश है यहाँ बेकफन हर लाश है
यहाँ बेनिशाँ हर ग़ोर है यहाँ हर तरफ़ इक शोर है
यहाँ नाम तेरा लूँ तो क्या यहाँ कौन है जो सुन सके
यहाँ ग़मज़दा है ये रेत भी, है उसी का नोहा हर तरफ़
उसी चीख में तेरा नाम भी कहीँ हो न जाए बर तरफ़
तेरा नाम मेरे लबों पे है, कि तेरा नाम मेरे दिल में है
पर ले तो उसको ले कहाँ तेरा दोस्त इस मुश्किल में है

Wednesday, October 21, 2015

BEHAVE

Behave, or be forgotten like many who came before...
For oblivion is the chastisement of the indecent.
When to say what... in whose presence, and where
Is something that in the masses has been absent.
Hence, we know just a few who with everything take care...
The rest are forgotten like the steam that rose up in the air.

Don't be false, don't copy, authenticity is a gem rarely found.
Don't imitate, learn and assimilate like a seed in the ground.

Monday, October 19, 2015

उम्मीद-ए-ऐनान-ए-फ़कीराँ

खुली लाशों का कब्रिस्तान बनके
बहुत चुप है ज़मी वीरान बनके

शरीक़-ए-मजलिस-ए-दरवेश होकर
तेरे दर जाएँगे मेहमान बनके

देख ये खूँ की नदी तख़लीक़ तेरी
कहाँ तू चल दिया अन्जान बनके

हर तरफ़ ये आग है मेरी लगाई
के हूँ शर्मिन्द: मैं इन्सान बनके

जो है उम्मीद-ए-ऐनान-ए-फ़कीराँ
वो इक दिन आएगी तूफ़ान बनके

Saturday, October 17, 2015

मेरे पिता के नाम

कहाँ हो? कहाँ हो? के हूँ ज़ेरे ख़ंजर...
किया था जो वादा, छू के मेरा सर
वो वादा कहाँ है? के वो सर है तनहा...
वो वादा कहाँ है? के हूँ नज़रे नेज़ा...
के ये सर जो तुमको था सब से प्यारा
जो सर था तुम्हारी नज़र का सितारा
उस सर पे लाखोँ मुसीबत हैं बरपा
उस सर पे तल्वारें खिंचती हैं बेजा
कहाँ हो? कहाँ है तुम्हारा वो वादा
जाने कब हो जाए ये सर  शिकस्ता
ग़ायब हो... जाने कहाँ हो गए गुम...
आ जाओ... लेकिन नहीं आओगे तुम
के देखो... तुम्हारा लहू है ज़मी पर
देखो के कटने को है बस मेरा सर
आता हूँ अभी मुझमें है जान बाक़ी
है तुमसे मिलने का अरमान बाक़ी

Sunday, October 11, 2015

SWORD

Now you see blood everywhere...
Ask me just why don't I yield.
All of you just left me bare
Like a sword in a battlefield.

Saturday, October 10, 2015

हर इक लफ़्ज़ है मुख़्तार मेरा

मेरा माज़ी है इक हथियार मेरा
तमाचा मौत का हर वार मेरा

ज़माने को बदलने के लिए बस
काफ़ी है दिल-ए-बीमार मेरा

ज़रूरत तेरी होगी जिसको होगी
मुझे काफ़ी है ये अंगार मेरा

सिपाही हैं मेरे ये दोनों बाज़ू
ज़हन मेरा सिपहसालार मेरा

ये मेरी बातें हंसने को नहीं हैं
कि हर इक लफ़्ज़ है मुख़्तार मेरा

चला के उसको मुझपे देख ले क्या
बिगाड़ेगी तेरी तलवार मेरा

मेरे सर पर हैं बंदूकें ये सारी
फ़ैसला हो जाने क्या इस बार मेरा

Tuesday, September 22, 2015

WHY SO SERIOUS? BECAUSE ALL IS FIRE! THAT'S WHY...

दिल खून के आंसू रोता है, अशआर आग में जलते हैं
हर बार रौशनी को छू कर हर बार आग में जलते हैं
दिल कहता है के दूर चलो, अब जलता है ये तूर चलो
करके मुहब्बत तुमसे हम बेकार आग में जलते हैं
रखकर थोडा ध्यान बढ़ो, के लेकर तुम सामान बढ़ो
ये गाँव घिरा है शोलों में, घरबार आग में जलते हैं
सच बोल दिया तो सूली है, मुँह खोल दिया तो सूली है
हर ख़बर यहाँ है आगज़नी, अख़बार आग में जलते हैं
जो देखें निगाहें सब वीराँ, हर तरफ़ हैं राहें सब वीराँ
है दूर तलक बस वीरानी, कोहसार आग में जलते हैं

सोचा तो होता

सोचा तो होता ये करने से पहले
“आप" से "तुम"पे उतरने से पहले

कुछ भी नहीं ज़िन्दगी इक सफ़र है
देख लो, यहाँ पर ठहरने से पहले

उसकी गली है या मकतल है अपना
कौन जान पाया ग़ुज़रने से पहले?

कहते हैं जिसको ख़तरनाक शीशा
वो इक आईना था, बिखरने से पहले

ये साज़िश है जिसकी मुझे मार देना
उसे मार दूँ, बस, मैं मरने से पहले

Friday, September 18, 2015

HEIGHTS

ऊँचाईयाँ हैं, इज़्ज़तें हैं, दोस्त, पर, कोई नहीं
इज़्ज़तें भी आती जाती, हमसफ़र कोई नहीं

ज़ख़्म हैं गहरे पुराने, और दिल में हैं सुराख़
हैं तबीबो चाराग़र पर, बाअसर कोई नहीं

हर जगह हैं सर झुकाते, सब को हैं करते हैं सलाम
सारे दर हैं उसकी चौखट, और घर कोई नहीं

उसकी ख़ातिर सबके दर पे हमने है सजदा किया
सर भी है उसकी अमानत, मेरा सर कोई नहीं

किसपे देते जान हो तुम, किसका करते हो तवाफ़
है नहीं कुछ इल्म तुमको, और ख़बर कोई नहीं

Wednesday, September 9, 2015

KILLING

Every morning he smiles...
His mother waves back as he leaves the house
after having had his good breakfast
before or after brushing his teeth.

He holds in his hands with care...
her hands that tremble as she looks at him.
His eyes make promises like eyes of men.
His arms full of manhood too...
Dying to embrace, but shying away.

He enters and greets everyone...
Everyone shakes his promising hand.
She looks at him with all respect...
Passing from there with coffee in hand.

He comes back home to a wagging tail...
And a hairy bundle of selfless love.
Two eyes that look at him with hope...
He might concede some more cookies.

All this cut short with one stroke...
It's called killing... And it's not easy.

Wednesday, September 2, 2015

जरी

अब न कोई है सख़ी, और न कोई है वली
अब न कोई तेग़ है, और न कोई है जरी
अब तो ख़ाली दर्द है, कोई भी शिफ़ा नहीं
अब जो सारे दोस्त हैं, कोई बावफ़ा नहीं
अब जो सारे शेर हैं, वो मिट्टीयों के हैं बने
अब जो सारे मर्द हैं, वो चूड़ीयों से हैं सजे
जाने कब आएगा वो, ये ख़ुल्द तार तार है
जाने कब आएगा वो, जो एक शहसवार है
जाने कब आएगा वो, जो क़ातिलों की हार है
जाने कब आएगा वो, कि जिसका इन्तज़ार है
वरना अब तो रात है, बस दूर तक है तीरगी
अब न कोई जान है, और न कोई ज़िन्दगी
अब यहाँ कोई तरीक़े, और न कोई तौर हैं
हैफ़ अब बस आप हैं और आप जैसे और हैं

Thursday, August 27, 2015

KARBALA ETERNAL

देख माँ, मेरे ही ऊपर अब है इन सब की उम्मीद
आज जाने दे मुझे माँ, आज होने दे शहीद

देख माँ, है काफ़िला हक़ का घिरा दर क़ातिलान
कैसे देखूँ चुप खड़ा हो के ये मैं रह के बईद

देख माँ, वो पूछते हैं "है कोई जो साथ दे"
देख माँ, वो हैं खड़े हक़ के वली पेशे यज़ीद

देख माँ, है फ़ौजे क़ातिल और हक़ का कारवाँ
है नहीं पानी कहीं भी, रेत है बस पेशे दीद

देख माँ, अब डर नहीं, तू मुझको जाने दे वहाँ
आशिकों की है शहादत, आशिकों की है ये ईद

Wednesday, August 26, 2015

शमशान

ज़र्रे ज़र्रे में यहाँ पर सिर्फ़ कब्रिस्तान है
बाबा कहते हैं मेरे कि हर जगह शमशान है
चींटियाँ जातीं हैं हर जा और परिन्दे हर तरफ़
बस बशर को डर है उसका जो जगह सुनसान है
दिल में हिम्मत और ज़बाँ पे नाम उसका बस रहे
हर जगह है बा हिफ़ाज़त, हर सड़क आसान है
ख़ौफ़ है किस बात का जब मौत है अपनी हफ़ीज़
खौफ़ है किस बात का जब हर जगह वीरान है
डर है किस बाबत हमें जब सब है मिट्टी का बना
आज है और कल नहीं ये अपनी जो पहचान है

Thursday, August 20, 2015

अलविदा

हाथ को ऊपर उठा के "या ख़ुदा" कहने का वक़्त
आ गया इस शहर को अब अलविदा कहने का वक़्त

बात बाक़ी कुछ नहीं, सब आपके है रू ब रू
देखिए मेरी तरफ़, है अब सज़ा कहने का वक़्त

आ गया है दौर अब ज़ालिम को करने का सलाम
आ गया है क़ातिलों को नाख़ुदा कहने का वक़्त

शम्मा के आशिक़ हैं सब और आग के हैं दोस्त हम
आ गया है अब शहादत को मज़ा कहने का वक़्त

वक़्त है अब जा चुका कुछ दिल की कहने का हुज़ूर
है "तेरी ख़्वाहिश में ही मेरी रज़ा" कहने का वक़्त

Saturday, August 15, 2015

DEPENDENCE DAY 2015

मुल्क का टूटे हुए इक आईने में अक्स है
मुल्क ये मेरा नहीं है, कातिलों का रक्स है

मुल्क मेरा खो गया उस रोज़ ताइवान में
लापता जब हो गए थे “बोस” आसमान में

मुल्क मेरा रो रहा है आपके मज़ाक पर
मुल्क के हिस्से हुए हैं “भगत सिंह” की ख़ाक पर

लुटी हुई आज़ाद गलियाँ कुछ ठगों का काम था
आज़ाद जो था दर असल “आज़ाद” उसका नाम था

चूड़ियाँ तुमको मुबारक साल के हर एक रोज़
कर लो आजादी की बातें साल में बस एक रोज़ 

Monday, July 27, 2015

हमसफ़र

लोग आगे बढ़ गए, अब रहगुज़र का साथ है
रात की है तीरगी, तेग़ ओ तबर का साथ है

साथ है कोई नहीं, और राह भी है गुमशुदा
बारहा होते निहाँ, धुंधले क़मर का साथ है

हमसफ़र कहते हैं किसको, दोस्त किसका नाम है
साया है बस साथ अपने और सफ़र का साथ है

अब कहाँ उसका तसव्वुर भी नहीं है दूर तक
जिसको कहते थे कि ये शामो सहर का साथ है

ठीक है के नाम है बेहद तेरी तलवार का
लेकिन अपना मौत से आठों पहर का साथ है

Sunday, July 19, 2015

शमशीर

तेरे ही नाम की शमशीर है ये
कि तेरे इश्क़ की ज़ंजीर है ये

है सारे बेजुबानों की जुबां जो
मेरे ही ख्व़ाब की ताबीर है ये

तेरा ही नाम है लुत्फ़ ए इबादत
मुझे नाम ए अली, शब्बीर है ये

ये तेरे नाम का वाहिद सहारा
ये है इस्मे खुदा, हर पीर है ये

मेरी हर इब्तेदा है नाम तेरा
तेरे ही नाम पे आखीर है ये 

Wednesday, July 15, 2015

चूड़ियाँ

है दिखाया वक़्त ये हमको अदब ने दोस्तों
पहन लीं हैं चूड़ियाँ अब आप सब ने दोस्तों

क्या करें हम बात अब कैसी शहादत कौम की
खा लिया है आपको ज़र की तलब ने दोस्तों

उठ के आओ चूड़ियाँ तोड़ो उठाओ तेग़ अब
कर दिया है हम पे हमला अब ग़ज़ब ने दोस्तों

फ़िक्र ही करनी है तो फ़िक्रे हक़ीक़ी क्यों नहीं
घेर रक्खा है तुम्हें फ़िक्रे अजब ने दोस्तों

हाँ हमें पकड़ाई है बंसी अगर भगवान् ने
हमको बाज़ू भी दिए हैं अपने रब ने दोस्तों

Tuesday, July 7, 2015

एक परवाना बचा

टूटे परों के ढेर में ये एक परवाना बचा
दीवानों के क़त्ल में बस ये दीवाना बचा

आज टूटेंगी सभी, ईमारतें ये झूठ की
छोड़ मेरी फिक्र तू अपना बुतख़ाना बचा

पूरे घर की आग को, अब बुझा सकता है कौन
मयकदे को भूल जा, अपना पैमाना बचा

सब परिन्दे उड़ गए, बाग़ तनहा रह गया
पेड़ भी सब कट गए, और वीराना बचा

अब नहीं कोई दोस्ती, और न कोई इश्क़ है
बात भी बाक़ी नहीं, और न अफ़साना बचा

Saturday, July 4, 2015

ताराज 3

अपना घर भी ख़ाक़ है, करबला भी ख़ाक़ है
वो वली भी नोक पर, ये समा भी ख़ाक़ है

क्या लिखूँ मैं तेरा नाम, क्या करूँ मैं तेरी बात
तेरा हुस्न बग़ुज़र्द, हर अदा भी ख़ाक़ है

जो बला भी आएगी, ख़ुद भी हार जाएगी
सब कहेंगे ख़ाक़ हम, और बला भी ख़ाक़ है

इक हुसैन हैं वली, और जो भी हैं सभी
बात उनकी झूठ सब, और ख़ुदा भी ख़ाक है

क़त्ल कर दिया उसे, अब यहाँ है क्या बचा
ज़मीनो आसमाँ हैं ख़ाक़, और हवा भी ख़ाक़ है

इस नशे में बात क्या, जाम की बिसात क्या
मुझको जाम है ज़हर, मयक़दा भी ख़ाक़ है

एक मुझको याद वो, वो नहीं तो फिर मेरी
इब्तेदा भी ख़ाक़ है, इन्तेहा भी ख़ाक़ है

ताराज 2

रहा नहीं सरपरस्त हो गया ताराज घर
एक बच्चा रो रहा गोद में ले माँ का सर

लेके जाना लाश तक था नहीं बिलकुल सहल
और फिर ये पूछना क्या यही है वो बशर

माँ तू मेरे बाज़ू देख ये सहारा अपना देख
कुछ नहीं होगा मुझे देख माँ तू ग़म न कर

लुट गईं हैं चूड़ियाँ और पैराहन के रंग
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं देख तेरा हमसफ़र

अपने घर में ख़ाक है और दुनिया में कहीं
हो बला से गर्द हो या कि हो शम्स ओ क़मर

Thursday, July 2, 2015

ताराज 1

ख़ून आँखों से रवाँ है ख़ाना-ए-ताराज में
ज़ुल्मो दहशत हमपे जारी क़ातिलों के राज में

दिन हमारे मातमी और सुर्ख़ हैं रातें हमारी
दिन हमारे बा-अज़ा हैं, रात भर है अश्क़बारी

ख़ंजरों के साए में भी नाम ले लेकर चले
हम शहीदे पाक़ का पैग़ाम ले लेकर चले

हमने उठाया था हलफ़ बेकसी की लाश पर
रो रहे हैं आज तक अपने वली की लाश पर

Monday, June 29, 2015

शंकर शंकर

चारों ओर है तेरा नारा
तू है अपना एक सहारा
दुनिया सारी एक समन्दर
नाम है तेरा एक किनारा
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

तू है तो फिर और नहीं कुछ
मन है मन्दिर और नहीं कुछ
तेरे नाम के और सिवा क्या
सर है हाज़िर और नहीं कुछ
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

हम पर रहमत काम है तेरा
आगाज़ो अंजाम है तेरा
अपने अकेलेपन का साथी
और नहीं बस नाम है तेरा
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

ये फरियाद भी तू ही तू है
हमको याद भी तू ही तू है
तू है अपनी साँस का चलना
उसके बाद भी तू ही तू है
रूप भयंकर
पर अभयंकर
चारों ओर है
शंकर शंकर

Saturday, June 27, 2015

VICTORY

फिर से होगा सामना परवाज़ का ज़ंजीर से
फिर कटेंगे सर मगर जीतेगा ख़ूँ शमशीर से

Sunday, June 14, 2015

CORE

In the face of endless suffering,
he who chooses to stay and fight
is like an army that holds a fort;
fights and dies in the name of love.

The one who takes his own life
is like one of those old explorers
who move away from what is known
and sail their ships to distant seas.

Saturday, June 13, 2015

ग़ज़ल 7

पहले कभी न कर सका अबकि बार कर
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा इंतज़ार कर

लेके तेग़ हाथ में तू देखता है क्या
आँख मिला हाथ उठा एक वार कर

कोई नहीं बचा जो तेरे पेश आ गया
नेज़ों पे सर चढ़ा दिए हैं सबको मार कर

मुझसे की थी बात कभी उसको मत भुला
यूँ सुपुर्द ए खाक़ न अपना क़रार कर

तुझसा नहीं अहदशिकन देख तेरा दोस्त
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा ऐतबार कर

देख ली फिर से मेरे दिल की हकीक़त
सीने में मेरे सैंकड़ों नश्तर उतार कर

देख कहीं कट न जाएँ आशिकों के सिर
क़ातिल न आने पाए फ़सीलों को पार कर

मैं आ रहा हूँ पर ये इक अहसान है मेरा
ज़ाहिर न मुझपे अपना कोई अख़्तियार कर

सर रख दिए हैं अपने इस शमशीर पे तेरी
अब कुश्तग़ाने इश्क़ में अपना शुमार कर 

Wednesday, June 10, 2015

ग़ज़ल 6

हम पे ये यलग़ार तुम्हारी
आज पड़ेगी तुमको भारी

 नहीं बचेगा कोई लेकिन
जंग रहेगी अपनी जारी

 पागलपन हम दीवानों पे
सहरो शाम रहेगा तारी

 अाज यहाँ पर जल जाएंगे
परवाने सब बारी बारी

 लश्कर तेरा थर्राएगा
गूँजेगी आवाज़ हमारी

 ख़ून बहेगा रेत के ऊपर
हवा करेगी बात हमारी

Monday, June 8, 2015

ग़ज़ल 5

हम सब मुरीद हो गए हैं इन्तज़ाम के
क्या ख़ूब बन्दोबस्त हैं ये क़त्ले आम के है महफ़िले लईन पुर-अंदाज़ यहाँ पर ख़ंजर चलेंगे अब यहाँ हर एक नाम के अब रह गए हैं आप और ये आप की बातें जाने कहाँ चले गए सब दोस्त काम के है मौत ये किसकी जिसे तुम जश्न हो कहते मानी हमें बताओ भी इस दौर ए जाम के अब दिन की राह देखते ही बीतती है रात दिखते हैं सहर में भी अब रंग शाम के

Sunday, May 31, 2015

HEISENBERG

Salgo de ahí...
donde soy el elegido, donde todos me miran, me quieren, me siguen.
Si son atrevidos me hacen bromas, me dicen chistes, de vez en cuando hasta me acaban insultando...
Salgo y me encuentro con los que firman... con los que firman y me saludan...
O si creen que soy engreído, me miran con desdén.
Salgo y me encuentro con otros, otros que me oyen... No sólo me oyen, sino también me escuchan...
Esos que son de otras comarcas, que han sido los nadies de sus pueblos...
Esos me escuchan y admiran el hecho de que yo cuente sin pelos en la lengua los cuentos de mi viaje desde nadie hasta nadie punto uno.
Y creen que es una historia de gran éxito.
Y de allá me voy con ellos que se ofrecen a llevarme hasta la casa...
La casa que por vergüenza tengo que ocultar...
Me bajo antes y camino al sol.
Llego a casa sintiéndome miserable por ser el que ni pudo proveer a su familia.
Ignoro las miserias y veo el viaje de Walter White... desde nadie hasta Heisenberg.
Sueño con dinero y me pregunto cómo logran dormir los que lo tienen.

Thursday, May 28, 2015

ग़ज़ल 4

चले नहा के ख़ून में, जिस्मो जाँ फ़िग़ार सब
नेज़ों पे लौट आ गए, गए थे जो सवार सब

तू जो अबके दूर है, क्या सबब के क्या मिले
हैं एक सी मेरे लिए, अब तो जीत हार सब

नाज़ जो था इश्क़ पे, इश्क़ जो था रात दिन
ख़ाक में यूँ मिल गया, हो गया ग़ुबार सब

हुआ है हुक़्म वक्त का, तू हुआ है बादशाह
शहर में तेरे बंद है, ये अपना कारोबार सब

हर गली में शोर है, हर तरफ़ है बस अज़ा
मौत तक इसी तरह, रहेंगे अश्कबार सब

Sunday, May 10, 2015

ग़ज़ल 3

कब तलक सुनते रहें चीखें तुम्हारे दार में 
मंज़िलें कितनी जुड़ेंगी मौत की मीनार में 

कब तलक होगा गुसल खूं से हमारे जिस्म का 
कब तलक लाशें बिकेंगी गोश्त के बाज़ार में 

कब तलक चलता रहेगा जश्न तेरी जीत का 
कब तलक रोते रहेंगे इस तरफ सब हार में 

कब तलक होगा रवाँ यूँ आपका ये कारवाँ 
कब तलक जाएंगी जानें आपकी रफ़्तार में 

कब तलक सासें हमारी यूँ खरीदी जाएंगी 
कब तलक चर्चा रहेगा आपका अख़बार में 

कब तलक चलता रहेगा मातमे मज़्लूमिअत 
कब तलक गूंजेगी क़ातिल की हंसी दरबार में 

ग़ज़ल 2

वो मुझको सहर देती है, मुझे आग़ाज़ देती है
वो मुझको इल्म देती है, अलग अंदाज़ देती है

जिन्होंने ज़िन्दगी खाई, उन्हीं माज़ी के गिद्धों को
कमी तेरी फिर इक पुरज़ोर सी परवाज़ देती है

ये तेरी याद मौसीक़ी मगर बेजानो बेमक़सद
ये मुझको रक्स देती है, मगर बेसाज़  देती है

ये सहरो रात का रोना, ये पागलपन, ये बेचैनी
न ये ख़ामोश रखती है, न ये अलफ़ाज़ देती है

कभी है बादशाहत और कभी है लाश बेपर्दा
कहीं ये मौत है देती, कहीं एजाज़ देती है

वो अब है और बस्ती में, वो अब है और दुनिया में
यहाँ से फिर गु़ज़रने पर वो क्यों आवाज़ देती है

ग़ज़ल 1

ऐसा लगता है कि कुछ होगा मगर होता नहीं
रास्ता वा है मगर अपना सफ़र होता नहीं 

वक्त की उन साअतों का भूलना पूरी तरह
उस तरफ़ तो हो गया है पर इधर होता नहीं 

इन हवाओं में वही अावाज़ उसकी है निहाँ
वो कहीं कुछ बोलता है पर नज़र होता नहीं 

है कमाल-ए-वक्त जो है अाज चर्चा आपका
वरना कोई भी यहाँ पर बाहुनर होता नहीं

इश्क में उसके ये दिल बेदार है अब इस कदर 
होश खो देता है लेकिन बेखबर होता नहीं 

दार पे चढ़ के भी उसका ज़िक्र है दर ख़ासो आम 
वो फ़ना तो हो गया है बेअसर होता नहीं 

लब्बैक या हुसैन

हर साल मुहर्रम आती है
फर्श ए अज़ा बिछ जाती है
सब जानते हैं अब ग़म होगा
हर एक तरफ मातम होगा
कुछ दिन होंगे बस अश्कों के
कुछ रातें दुःख की बीतेंगी
हर पहर अलम लहराएगा
पर पता किसे था ये कल तक
ये साल मुहर्रम का होगा
हर दिन बस नोहे गूंजेंगे
हर रात अज़ादारी होगी
ज़ंजीरज़नी तारी होगी
हर सिम्त खूंबारी होगी
बस तेरा अलम लहराएगा
हर पल बस याद दिलाएगा
तूने आवाज़ लगाई थी
अब कौन यहाँ पर आएगा
संग मेरे लहू नहाएगा
आवाज़ तेरी बस सुनते हैं
हम आज तलक ये कहते हैं
लब्बैक हुसैन 
लब्बैक हुसैन

Saturday, February 28, 2015

QUATRAINS 2015

Years have passed in constant pain
My best riders are now hurt or slain
Some battles won, some battles lost
But no battle has been fought in vain



I, really, by fire, my own fire
Flames from the inbuilt pyre
Consuming me all constantly
By and by, whole and entire


Sunday, February 15, 2015

¿Qué clima hace?

Ahora ni tú  estás interesada...
La vida está ya fría
Pero igual hablemos del pasado...
Quise decir clima.
Hablemos del clima!
-MR

MI AMOR

Mi amor...
La gente diría que te envejeciste
Yo digo eres añejo ya...
Tras haber pasado una vida de dolor
Una vida de absoluto dolor
La única que te pude dar
Mi amor...
Mi amor añejo
A lo mejor te sientas mal
A lo mejor te sientas mal
Por haberme querido
Pues He sido...
Una tortura.
Un sufrimiento...
Pero,
Ya que no tengo palabras finas
Te digo sólo estas tres...
Que suenan repetidas
y quizás aburridas
Pero te las digo de todos modos...
Te las digo ya...
"Te quiero mucho"...

Wednesday, January 21, 2015

QUIERO SER UNA EQUIVOCACIÓN

Escondida, camuflada entre mil intentos,
quiero ser una equivocación,
una sola equivocación que te cueste la vida...

...un fracaso entre mil éxitos
que cambie la dinámica del juego entero.

Quiero ser un infinito abismo
que yazca en tu rumbo
con su boca abierta para devorar
todo lo que por alguna equivocación se encuentre allá.

Quiero ser ese asesino...
Que ha sido forjado en llamas
con un sólo propósito,
el de ser la fina hoja que atraviese tu corazón.

Quiero ser lo temido de la penumbra,
las sombras del bosque,
los sonidos de la selva,
el infinito de los polos,
la sed del desierto...

Quiero ser tu prueba
ante el tribunal del más allá.

Quiero ser ese último momento tuyo
que tanto temes.

Quiero ser tu indiferente universo
al que no importas ni en lo más mínimo.

Sunday, January 18, 2015

JOURNAL OF CANDLES AND OF THE SUN

Candles don't count in daylight
But once we approach the night
There's no point of crying over
How once the sun burned bright

Thursday, January 15, 2015

IN CHAOS

We fall silent, we hibernate
We castle in, we close the gate
We call back the whole entourage
We breathe in slow, we camouflage
We say no words, we do not cry
We build ourselves, we fortify
We go formless, we lose all forms
We shut ourselves from all storms
We sit down deep and in silence
We must survive in your absence
So, when chaos will show its face
We witness it through your embrace