Saturday, July 23, 2016

अहले अज़ा


मेरी बातों को हर इन्सां आज नहीं कल जानेगा 
तूने न माना लेकिन मुझको सारा ज़माना मानेगा 

ख़ाक में कितने सुल्ताँ ग़ारत, कौन गिनेगा, बोल मुझे 
ख़ुद ही अपनी तारीखों की ख़ाक यहां पर छानेगा 

आँखों में हैं अश्क़ हमारी सीने पर हैं दाग़ बहुत 
अहले इश्क़ ओ अहले अज़ा को कौन नहीं पहचानेगा 

-ऋषिराज 

Saturday, July 16, 2016

तहरीर




क़ुर्बान हुई है फिर अपनी तकदीर तुम्हारे तख़्तों पर  
लिक्खी है हमारे मातम की तहरीर तुम्हारे तख़्तों पर

अब धरती सारी हिलती है, अब शोर बपा इक होता है 
होती है शुरू अब कब्रों की तामीर तुम्हारे तख़्तों पर 

ऊपर से हिदायत आई है कि जंग है लाज़िम अब तुमसे 
लिक्खेंगे लहू से हम अपनी तहरीर तुम्हारे तख़्तों पर 

ये मौत जो है हर जा बरपा, ये रक़्स तबाही का बरपा
ये होगा शुरू सब गलियों में, आख़ीर तुम्हारे तख़्तों पर  
  
अब बात तुम्हारी ख़त्म हुई और बात हमारी ख़त्म हुई,
बस बात करेगी अब अपनी शमशीर तुम्हारे तख़्तों पर 

- ऋषिराज 

Tuesday, July 5, 2016

असलियत

असलियत मेरी बहुत ही आम है
तयशुदा शुरुआत और अंजाम है
इसमें कोई भी जगह तेरी नहीं
इसलिए ये हर तरह नाकाम है
क्या सबब है इसकी मज़बूती का अब
बेवजह ये इसका इस्तेहकाम है
असलियत मेरी बहुत खामोश है
क्योंकि इससे दूर तेरा नाम है
तू नहीं है तो मुझे अय यार सुन
हर सहर इक बेकसी की शाम है
पढ़ रहा हूँ कुछ दिनों से बारहा
तेरा जो मेरे लिए पैगाम है
कुछ तो अब इस ज़ीस्त का हासिल मिले
जाने ये किस बात का हंगाम है
देख मेरी असलियत को तोड़ दे
शायद इसके बाद ही आराम है

- ऋषिराज