Friday, October 30, 2015

बेअमाँ


छोड़ कर मुझको यहाँ
सब हो गए हाफ़िज़ निहाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

सब ख़ाक है उनके बिना
अब वो कहाँ और मैं कहाँ
कोई नहीं मेरा पासबाँ
हैं हर तरफ़ खंजर सिना
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

है हर तरफ रेग-ए-तपाँ
हैं मौत की परछाइयाँ
है मश्क को छूना मना
अब कौन है मेरा यहां
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

नाम उनका, ये ज़बाँ
थे वो ही मेरे दो जहाँ
था उनका चेहरा आईना
राह-ए-मकान-ए-लामकाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

हर तरफ़ हैं आँधियाँ
हैं रेत के झोंके रवाँ
और चल रहा हूँ बेनिशाँ
मैं नातवाँ, तश्नादहाँ
मैं बेअमाँ... मैं बेअमाँ...
उनके गए... मैं बेअमाँ

Monday, October 26, 2015

नाम

अगर हम उसे बुलाएंगे हमें यकीन है कि वो आएगा
ये जो नाम अपने लबों पे है ये उसी का एक नाम है
इसे गर हवाओं में ले लिया तो खो न जाए ये कहीं
न हवाएं अपनी दोस्त हैं न ये रात ही है बावफ़ा
ये नाम है मेरे दोस्त का इसे लेके क्यों करूँ आम मैं
यहाँ हर तरफ है मौत बस यहाँ कैसे लूँ तेरा नाम मैं
यहाँ ज़ीस्त पाश पाश है यहाँ बेकफन हर लाश है
यहाँ बेनिशाँ हर ग़ोर है यहाँ हर तरफ़ इक शोर है
यहाँ नाम तेरा लूँ तो क्या यहाँ कौन है जो सुन सके
यहाँ ग़मज़दा है ये रेत भी, है उसी का नोहा हर तरफ़
उसी चीख में तेरा नाम भी कहीँ हो न जाए बर तरफ़
तेरा नाम मेरे लबों पे है, कि तेरा नाम मेरे दिल में है
पर ले तो उसको ले कहाँ तेरा दोस्त इस मुश्किल में है

Wednesday, October 21, 2015

BEHAVE

Behave, or be forgotten like many who came before...
For oblivion is the chastisement of the indecent.
When to say what... in whose presence, and where
Is something that in the masses has been absent.
Hence, we know just a few who with everything take care...
The rest are forgotten like the steam that rose up in the air.

Don't be false, don't copy, authenticity is a gem rarely found.
Don't imitate, learn and assimilate like a seed in the ground.

Monday, October 19, 2015

उम्मीद-ए-ऐनान-ए-फ़कीराँ

खुली लाशों का कब्रिस्तान बनके
बहुत चुप है ज़मी वीरान बनके

शरीक़-ए-मजलिस-ए-दरवेश होकर
तेरे दर जाएँगे मेहमान बनके

देख ये खूँ की नदी तख़लीक़ तेरी
कहाँ तू चल दिया अन्जान बनके

हर तरफ़ ये आग है मेरी लगाई
के हूँ शर्मिन्द: मैं इन्सान बनके

जो है उम्मीद-ए-ऐनान-ए-फ़कीराँ
वो इक दिन आएगी तूफ़ान बनके

Saturday, October 17, 2015

मेरे पिता के नाम

कहाँ हो? कहाँ हो? के हूँ ज़ेरे ख़ंजर...
किया था जो वादा, छू के मेरा सर
वो वादा कहाँ है? के वो सर है तनहा...
वो वादा कहाँ है? के हूँ नज़रे नेज़ा...
के ये सर जो तुमको था सब से प्यारा
जो सर था तुम्हारी नज़र का सितारा
उस सर पे लाखोँ मुसीबत हैं बरपा
उस सर पे तल्वारें खिंचती हैं बेजा
कहाँ हो? कहाँ है तुम्हारा वो वादा
जाने कब हो जाए ये सर  शिकस्ता
ग़ायब हो... जाने कहाँ हो गए गुम...
आ जाओ... लेकिन नहीं आओगे तुम
के देखो... तुम्हारा लहू है ज़मी पर
देखो के कटने को है बस मेरा सर
आता हूँ अभी मुझमें है जान बाक़ी
है तुमसे मिलने का अरमान बाक़ी

Sunday, October 11, 2015

SWORD

Now you see blood everywhere...
Ask me just why don't I yield.
All of you just left me bare
Like a sword in a battlefield.

Saturday, October 10, 2015

हर इक लफ़्ज़ है मुख़्तार मेरा

मेरा माज़ी है इक हथियार मेरा
तमाचा मौत का हर वार मेरा

ज़माने को बदलने के लिए बस
काफ़ी है दिल-ए-बीमार मेरा

ज़रूरत तेरी होगी जिसको होगी
मुझे काफ़ी है ये अंगार मेरा

सिपाही हैं मेरे ये दोनों बाज़ू
ज़हन मेरा सिपहसालार मेरा

ये मेरी बातें हंसने को नहीं हैं
कि हर इक लफ़्ज़ है मुख़्तार मेरा

चला के उसको मुझपे देख ले क्या
बिगाड़ेगी तेरी तलवार मेरा

मेरे सर पर हैं बंदूकें ये सारी
फ़ैसला हो जाने क्या इस बार मेरा