Tuesday, September 22, 2015

WHY SO SERIOUS? BECAUSE ALL IS FIRE! THAT'S WHY...

दिल खून के आंसू रोता है, अशआर आग में जलते हैं
हर बार रौशनी को छू कर हर बार आग में जलते हैं
दिल कहता है के दूर चलो, अब जलता है ये तूर चलो
करके मुहब्बत तुमसे हम बेकार आग में जलते हैं
रखकर थोडा ध्यान बढ़ो, के लेकर तुम सामान बढ़ो
ये गाँव घिरा है शोलों में, घरबार आग में जलते हैं
सच बोल दिया तो सूली है, मुँह खोल दिया तो सूली है
हर ख़बर यहाँ है आगज़नी, अख़बार आग में जलते हैं
जो देखें निगाहें सब वीराँ, हर तरफ़ हैं राहें सब वीराँ
है दूर तलक बस वीरानी, कोहसार आग में जलते हैं

सोचा तो होता

सोचा तो होता ये करने से पहले
“आप" से "तुम"पे उतरने से पहले

कुछ भी नहीं ज़िन्दगी इक सफ़र है
देख लो, यहाँ पर ठहरने से पहले

उसकी गली है या मकतल है अपना
कौन जान पाया ग़ुज़रने से पहले?

कहते हैं जिसको ख़तरनाक शीशा
वो इक आईना था, बिखरने से पहले

ये साज़िश है जिसकी मुझे मार देना
उसे मार दूँ, बस, मैं मरने से पहले

Friday, September 18, 2015

HEIGHTS

ऊँचाईयाँ हैं, इज़्ज़तें हैं, दोस्त, पर, कोई नहीं
इज़्ज़तें भी आती जाती, हमसफ़र कोई नहीं

ज़ख़्म हैं गहरे पुराने, और दिल में हैं सुराख़
हैं तबीबो चाराग़र पर, बाअसर कोई नहीं

हर जगह हैं सर झुकाते, सब को हैं करते हैं सलाम
सारे दर हैं उसकी चौखट, और घर कोई नहीं

उसकी ख़ातिर सबके दर पे हमने है सजदा किया
सर भी है उसकी अमानत, मेरा सर कोई नहीं

किसपे देते जान हो तुम, किसका करते हो तवाफ़
है नहीं कुछ इल्म तुमको, और ख़बर कोई नहीं

Wednesday, September 9, 2015

KILLING

Every morning he smiles...
His mother waves back as he leaves the house
after having had his good breakfast
before or after brushing his teeth.

He holds in his hands with care...
her hands that tremble as she looks at him.
His eyes make promises like eyes of men.
His arms full of manhood too...
Dying to embrace, but shying away.

He enters and greets everyone...
Everyone shakes his promising hand.
She looks at him with all respect...
Passing from there with coffee in hand.

He comes back home to a wagging tail...
And a hairy bundle of selfless love.
Two eyes that look at him with hope...
He might concede some more cookies.

All this cut short with one stroke...
It's called killing... And it's not easy.

Wednesday, September 2, 2015

जरी

अब न कोई है सख़ी, और न कोई है वली
अब न कोई तेग़ है, और न कोई है जरी
अब तो ख़ाली दर्द है, कोई भी शिफ़ा नहीं
अब जो सारे दोस्त हैं, कोई बावफ़ा नहीं
अब जो सारे शेर हैं, वो मिट्टीयों के हैं बने
अब जो सारे मर्द हैं, वो चूड़ीयों से हैं सजे
जाने कब आएगा वो, ये ख़ुल्द तार तार है
जाने कब आएगा वो, जो एक शहसवार है
जाने कब आएगा वो, जो क़ातिलों की हार है
जाने कब आएगा वो, कि जिसका इन्तज़ार है
वरना अब तो रात है, बस दूर तक है तीरगी
अब न कोई जान है, और न कोई ज़िन्दगी
अब यहाँ कोई तरीक़े, और न कोई तौर हैं
हैफ़ अब बस आप हैं और आप जैसे और हैं