Sunday, August 21, 2016

फिदायीन

रूह ओ बदन सब जान ओ दिल, आसान फ़िदा कर जाते हैं 
आते हैं कतारों में आशिक़ और जान फ़िदा कर जाते हैं 

औरों को दवाएँ हैं सारी, वो नाम तुम्हारा लेते हैं 
और नाम तुम्हारे पर अपनी पहचान फ़िदा कर जाते हैं 

जो मौत का पहरा हो तो हो, आते हैं तुम्हारे दरवाज़े 
जो भी फ़िदा हो करना फिर, इंसान फ़िदा कर जाते हैं  

अरमान दिलों में लेकर सब, आते हैं तुम्हारी उल्फ़त का 
और इश्क़ तुम्हारा पाकर सब, अरमान फ़िदा कर जाते हैं 

आते हैं तुम्हारे दरवाज़े वो मिसकीं हों या सुलतां सब 
बस शान तुम्हारी की ख़ातिर, हर शान फ़िदा कर जाते हैं 

Thursday, August 18, 2016

Love

When the mind saw no hope at all...

What moved him on was the crazy heart.

It saw oases when there was none,

And he walked through the burning sands.

Wherever he has reached today...

It was thanks to the insane love.

The irony is that the insane love

Now shows a desert in the oasis...

Love was his only weapon ever...

And now love becomes his final fall.

- Rishiraj

Sunday, August 14, 2016

JIHADI?

पलटते थे जब सारे अहबाब मेरे 
लुटते थे सामान-ओ-असबाब मेरे 
क़ातिल ने जब मुझको घेरा था तनहा 
थी हर रात तनहा, सवेरा था तनहा 
थीं साँसें भी मेरी क़ातिल के बस में 
जो गुज़री थी मुझपर मेरे कफ़स में 
जो आप देखते तो नहीं पूछते फिर 
कैसे है हाथों में शमशीर आखिर 
मैं क्यों हूँ अकेला मैं कैसे हूँ वाहिद 
क्यों हूँ मैं बाग़ी मैं क्यों हूँ मुजाहिद 

Saturday, July 23, 2016

अहले अज़ा


मेरी बातों को हर इन्सां आज नहीं कल जानेगा 
तूने न माना लेकिन मुझको सारा ज़माना मानेगा 

ख़ाक में कितने सुल्ताँ ग़ारत, कौन गिनेगा, बोल मुझे 
ख़ुद ही अपनी तारीखों की ख़ाक यहां पर छानेगा 

आँखों में हैं अश्क़ हमारी सीने पर हैं दाग़ बहुत 
अहले इश्क़ ओ अहले अज़ा को कौन नहीं पहचानेगा 

-ऋषिराज 

Saturday, July 16, 2016

तहरीर




क़ुर्बान हुई है फिर अपनी तकदीर तुम्हारे तख़्तों पर  
लिक्खी है हमारे मातम की तहरीर तुम्हारे तख़्तों पर

अब धरती सारी हिलती है, अब शोर बपा इक होता है 
होती है शुरू अब कब्रों की तामीर तुम्हारे तख़्तों पर 

ऊपर से हिदायत आई है कि जंग है लाज़िम अब तुमसे 
लिक्खेंगे लहू से हम अपनी तहरीर तुम्हारे तख़्तों पर 

ये मौत जो है हर जा बरपा, ये रक़्स तबाही का बरपा
ये होगा शुरू सब गलियों में, आख़ीर तुम्हारे तख़्तों पर  
  
अब बात तुम्हारी ख़त्म हुई और बात हमारी ख़त्म हुई,
बस बात करेगी अब अपनी शमशीर तुम्हारे तख़्तों पर 

- ऋषिराज 

Tuesday, July 5, 2016

असलियत

असलियत मेरी बहुत ही आम है
तयशुदा शुरुआत और अंजाम है
इसमें कोई भी जगह तेरी नहीं
इसलिए ये हर तरह नाकाम है
क्या सबब है इसकी मज़बूती का अब
बेवजह ये इसका इस्तेहकाम है
असलियत मेरी बहुत खामोश है
क्योंकि इससे दूर तेरा नाम है
तू नहीं है तो मुझे अय यार सुन
हर सहर इक बेकसी की शाम है
पढ़ रहा हूँ कुछ दिनों से बारहा
तेरा जो मेरे लिए पैगाम है
कुछ तो अब इस ज़ीस्त का हासिल मिले
जाने ये किस बात का हंगाम है
देख मेरी असलियत को तोड़ दे
शायद इसके बाद ही आराम है

- ऋषिराज 

Friday, June 10, 2016

I AM NOT THE MUSIC

No Ma'am, I am not the music you like...
Imagine yourself lost in a burning desert.
Imagine the winds slamming...
against all the nothingness of the desert...
And you covering yourself in your garb
trying to make some sense of the dunes...
Dunes that change places
as winds change their paces...
And in that moment you hear a great thunder.
A thunder that means death in the sands...
You hear the sound of many waters,
you see the lightning's bolt
blazing like some ancient sword...
That moment is me. That sound is me.
I am not the music that you like.