Friday, May 6, 2016

मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का

मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का 
मुंतज़िर अब है नहीं ये दिल किसी पैगाम का

हैफ़ बस कुछ देर पहले हमको था रुखसत किया  
है नहीं नाम ओ निशाँ भी अब कहीं बेनाम का 

इक तरफ है लाश बेसर इक तरफ गोर ओ कफ़न 
ग़र सभी हैं बेमकां तो क़स्र किसके काम का 

हम लटकती तेग़ को हैं देखते लैल ओ निहार 
रात दिन पढ़ते हैं नोहा आपके अंजाम का 

है अँधेरी रात और बेनूर है अब हर शमा 
चल रहे हैं नूर लेकर फिर भी उसके नाम का 

Sunday, April 24, 2016

दोस्ती

दोस्ती आह ओ फुगाँ से गुज़रेगी
कौन जाने अब कहाँ से गुज़रेगी

छोड़ दी हम ने अब गली तेरी
ख़ाक ही अब वहां से गुज़रेगी

ख़ौफ़ है हर तरफ़, जो है चर्चा
होके मौत कारवॉं से गुज़रेगी

हैं तेरे आज यहाँ क़स्र ओ महल
कल इक नदी यहाँ से गुज़रेगी

दुनिया ऐसी है दोस्त, जाने कब
ये जान अपनी जहॉँ से गुज़रेगी

Sunday, April 10, 2016

वो हमें सिखलाता है लिखना कहानी

जिसके माज़ी की नहीं कोई कहानी 
वो है सिखलाता शऊर-ए-ज़िंदगानी 

जो कभी शमशीर से खेला नहीं है 
जिसने कोई दुःख कभी झेला नहीं है 

धूप को देखा है जिसने छाँव से बस
जो नहीं धरती पे चलता पाँव से बस

है नहीं मतलब सही से और ग़लत से 
मौत देखी है मगर महलों की छत से 

रंग देखें हैं सभी, बाग़ों में जाके 
पर कभी रोया नहीं मकतल में आके 

वो है सिखलाता हमें लिखना कहानी 
वो है सिखलाता शऊर-ए-ज़िंदगानी 

Tuesday, April 5, 2016

मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश

जुदाई के डर से नहीं प्यार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
नहीं अपने दिल को जो बीमार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो करते हैं बातें ज़मी आसमाँ  की, जो करते हैं क़िस्सा-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत
हदों को मगर जो नहीं पार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो लिखते हैं अलफ़ाज़ आह-ओ-फुगाँ के, जो बनते हैं आशिक़ रू-ए-क़मर के
दामन को लेकिन नहीं तार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
तारीफ़ करते हैं कुत्ब-ओ-कलम की, जो करते हैं बातें भी रंज-ओ-अलम  की
हैं अपनी मुहब्बत को बाज़ार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश
जो चलते हैं हमराह बनकर हमेशा, मगर साथ चलके भी हैं दूर सबसे
यारों को भी जो नहीं यार करते, मैं करता हूँ उनको समझने की कोशिश

Monday, April 4, 2016

नींद और ख़्वाब

उस काली जगह पर जाकर 
छू आए फिर उस मंज़र को 
जिस मंज़र को जब भी देखा 
जाने क्या दिल पर गुज़री है 
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं 
है साफ़ कहीं है धूल जमी 
पर फिर भी ये तन है लरजाँ 
जाने क्या इस पर गुज़र गई 
हम ख़ाबीदा थे कुछ कुछ तो 
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं 
हर तरफ़ धुआँ सा बिखरा था 
हर तरफ़ धुआं सा बिखरा है
उस काली जगह पर जाकर 
जाने क्या मंज़र देख लिया 
तूफाँ सा दिल से गुज़रा है 
कुछ कहर सा सर पर टूटा है 
कुछ दर्द भी है, कुछ आंसू भी 
कुछ धुआँ भी है और कोहरा भी
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं

Tuesday, March 29, 2016

PRAY MORE FOR PARIS

हमको पता है कितने रन हैं कितने विकेट हैं खाते में
लहू में डूबी दुनिया है पर कुछ ख़बर-ए-हालात नहीं
कितने तूफाँ आए और फिर कितने तूफाँ चले गए
पर खून में अपने लोगों के कुछ पेरिस वाली बात नहीं

Friday, March 18, 2016

ये गलियाँ सारी खाकशुदा

वो बाग़ की बातें करती है, फूलों की दुहाई देती है  
हमको इस दुनिया में खाली इक मौत दिखाई देती है  

ये गलियाँ सारी खाकशुदा, ये शहर है डूबा अश्क़ों में 
यहाँ रात, सहर, हर कोने में, इक चीख सुनाई देती है 

जश्न है हक़ में क़ातिल के, मरने वाले की लाश यहाँ 
है मांगती माफ़ी मुंसिफ़ से, दिन रात सफाई देती है