कभी सोचा न था के याद तुमको कर के सहर-ओ-शाम
यूँ हम टाला करेंगे काम सारे घर के सहर-ओ-शाम
तुम्हारे बाद घर में यूँ हमेशा आग उठ्ठेेगी
खड़े होंगे यूँ ख़ुद बाहर हम अपने दर के सहर-ओ-शाम
सुबह उठ के ये सोचेंगे ये दुनिया छोड़ दें अब तो
सहर-ओ-शाम फिर से जी उठेंगे मर के सहर-ओ-शाम
फिर हर दिन सोच के निकलेंगे अब तुमसे करेंगे बात
वापस लौट आएँगे अकेले डर के सहर-ओ-शाम
ये मेरा घर जलेगा फिर ये मेरा सर क़लम होगा
तमाशे फिर किए जाएँगे मेरे सर के सहर-ओ-शाम
-ऋषिराज
सहर-ओ-शाम: Morning and evening
क़लम: detached, cut