हर साल मुहर्रम आती है
फर्श ए अज़ा बिछ जाती है
सब जानते हैं अब ग़म होगा
हर एक तरफ मातम होगा
कुछ दिन होंगे बस अश्कों के
कुछ रातें दुःख की बीतेंगी
हर पहर अलम लहराएगा
पर पता किसे था ये कल तक
ये साल मुहर्रम का होगा
हर दिन बस नोहे गूंजेंगे
हर रात अज़ादारी होगी
ज़ंजीरज़नी तारी होगी
हर सिम्त खूंबारी होगी
बस तेरा अलम लहराएगा
हर पल बस याद दिलाएगा
तूने आवाज़ लगाई थी
अब कौन यहाँ पर आएगा
संग मेरे लहू नहाएगा
आवाज़ तेरी बस सुनते हैं
हम आज तलक ये कहते हैं
लब्बैक हुसैन
लब्बैक हुसैन
फर्श ए अज़ा बिछ जाती है
सब जानते हैं अब ग़म होगा
हर एक तरफ मातम होगा
कुछ दिन होंगे बस अश्कों के
कुछ रातें दुःख की बीतेंगी
हर पहर अलम लहराएगा
पर पता किसे था ये कल तक
ये साल मुहर्रम का होगा
हर दिन बस नोहे गूंजेंगे
हर रात अज़ादारी होगी
ज़ंजीरज़नी तारी होगी
हर सिम्त खूंबारी होगी
बस तेरा अलम लहराएगा
हर पल बस याद दिलाएगा
तूने आवाज़ लगाई थी
अब कौन यहाँ पर आएगा
संग मेरे लहू नहाएगा
आवाज़ तेरी बस सुनते हैं
हम आज तलक ये कहते हैं
लब्बैक हुसैन
लब्बैक हुसैन
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