Sunday, May 10, 2015

ग़ज़ल 1

ऐसा लगता है कि कुछ होगा मगर होता नहीं
रास्ता वा है मगर अपना सफ़र होता नहीं 

वक्त की उन साअतों का भूलना पूरी तरह
उस तरफ़ तो हो गया है पर इधर होता नहीं 

इन हवाओं में वही अावाज़ उसकी है निहाँ
वो कहीं कुछ बोलता है पर नज़र होता नहीं 

है कमाल-ए-वक्त जो है अाज चर्चा आपका
वरना कोई भी यहाँ पर बाहुनर होता नहीं

इश्क में उसके ये दिल बेदार है अब इस कदर 
होश खो देता है लेकिन बेखबर होता नहीं 

दार पे चढ़ के भी उसका ज़िक्र है दर ख़ासो आम 
वो फ़ना तो हो गया है बेअसर होता नहीं 

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