Thursday, May 28, 2015

ग़ज़ल 4

चले नहा के ख़ून में, जिस्मो जाँ फ़िग़ार सब
नेज़ों पे लौट आ गए, गए थे जो सवार सब

तू जो अबके दूर है, क्या सबब के क्या मिले
हैं एक सी मेरे लिए, अब तो जीत हार सब

नाज़ जो था इश्क़ पे, इश्क़ जो था रात दिन
ख़ाक में यूँ मिल गया, हो गया ग़ुबार सब

हुआ है हुक़्म वक्त का, तू हुआ है बादशाह
शहर में तेरे बंद है, ये अपना कारोबार सब

हर गली में शोर है, हर तरफ़ है बस अज़ा
मौत तक इसी तरह, रहेंगे अश्कबार सब

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