मेरी बातों को हर इन्सां आज नहीं कल जानेगा
तूने न माना लेकिन मुझको सारा ज़माना मानेगा
ख़ाक में कितने सुल्ताँ ग़ारत, कौन गिनेगा, बोल मुझे
ख़ुद ही अपनी तारीखों की ख़ाक यहां पर छानेगा
आँखों में हैं अश्क़ हमारी सीने पर हैं दाग़ बहुत
अहले इश्क़ ओ अहले अज़ा को कौन नहीं पहचानेगा
-ऋषिराज
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