Tuesday, July 5, 2016

असलियत

असलियत मेरी बहुत ही आम है
तयशुदा शुरुआत और अंजाम है
इसमें कोई भी जगह तेरी नहीं
इसलिए ये हर तरह नाकाम है
क्या सबब है इसकी मज़बूती का अब
बेवजह ये इसका इस्तेहकाम है
असलियत मेरी बहुत खामोश है
क्योंकि इससे दूर तेरा नाम है
तू नहीं है तो मुझे अय यार सुन
हर सहर इक बेकसी की शाम है
पढ़ रहा हूँ कुछ दिनों से बारहा
तेरा जो मेरे लिए पैगाम है
कुछ तो अब इस ज़ीस्त का हासिल मिले
जाने ये किस बात का हंगाम है
देख मेरी असलियत को तोड़ दे
शायद इसके बाद ही आराम है

- ऋषिराज 

No comments:

Post a Comment