Sunday, August 14, 2016

JIHADI?

पलटते थे जब सारे अहबाब मेरे 
लुटते थे सामान-ओ-असबाब मेरे 
क़ातिल ने जब मुझको घेरा था तनहा 
थी हर रात तनहा, सवेरा था तनहा 
थीं साँसें भी मेरी क़ातिल के बस में 
जो गुज़री थी मुझपर मेरे कफ़स में 
जो आप देखते तो नहीं पूछते फिर 
कैसे है हाथों में शमशीर आखिर 
मैं क्यों हूँ अकेला मैं कैसे हूँ वाहिद 
क्यों हूँ मैं बाग़ी मैं क्यों हूँ मुजाहिद 

No comments:

Post a Comment