Thursday, August 20, 2015

अलविदा

हाथ को ऊपर उठा के "या ख़ुदा" कहने का वक़्त
आ गया इस शहर को अब अलविदा कहने का वक़्त

बात बाक़ी कुछ नहीं, सब आपके है रू ब रू
देखिए मेरी तरफ़, है अब सज़ा कहने का वक़्त

आ गया है दौर अब ज़ालिम को करने का सलाम
आ गया है क़ातिलों को नाख़ुदा कहने का वक़्त

शम्मा के आशिक़ हैं सब और आग के हैं दोस्त हम
आ गया है अब शहादत को मज़ा कहने का वक़्त

वक़्त है अब जा चुका कुछ दिल की कहने का हुज़ूर
है "तेरी ख़्वाहिश में ही मेरी रज़ा" कहने का वक़्त

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