Saturday, June 13, 2015

ग़ज़ल 7

पहले कभी न कर सका अबकि बार कर
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा इंतज़ार कर

लेके तेग़ हाथ में तू देखता है क्या
आँख मिला हाथ उठा एक वार कर

कोई नहीं बचा जो तेरे पेश आ गया
नेज़ों पे सर चढ़ा दिए हैं सबको मार कर

मुझसे की थी बात कभी उसको मत भुला
यूँ सुपुर्द ए खाक़ न अपना क़रार कर

तुझसा नहीं अहदशिकन देख तेरा दोस्त
मैं आ रहा हूँ बस तू मेरा ऐतबार कर

देख ली फिर से मेरे दिल की हकीक़त
सीने में मेरे सैंकड़ों नश्तर उतार कर

देख कहीं कट न जाएँ आशिकों के सिर
क़ातिल न आने पाए फ़सीलों को पार कर

मैं आ रहा हूँ पर ये इक अहसान है मेरा
ज़ाहिर न मुझपे अपना कोई अख़्तियार कर

सर रख दिए हैं अपने इस शमशीर पे तेरी
अब कुश्तग़ाने इश्क़ में अपना शुमार कर 

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