मौत से है अब हमारा साथ सुबह ओ शाम का
मुंतज़िर अब है नहीं ये दिल किसी पैगाम का
हैफ़ बस कुछ देर पहले हमको था रुखसत किया
है नहीं नाम ओ निशाँ भी अब कहीं बेनाम का
इक तरफ है लाश बेसर इक तरफ गोर ओ कफ़न
ग़र सभी हैं बेमकां तो क़स्र किसके काम का
हम लटकती तेग़ को हैं देखते लैल ओ निहार
रात दिन पढ़ते हैं नोहा आपके अंजाम का
है अँधेरी रात और बेनूर है अब हर शमा
चल रहे हैं नूर लेकर फिर भी उसके नाम का
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