जिसके माज़ी की नहीं कोई कहानी
वो है सिखलाता शऊर-ए-ज़िंदगानी
जो कभी शमशीर से खेला नहीं है
जिसने कोई दुःख कभी झेला नहीं है
धूप को देखा है जिसने छाँव से बस
जो नहीं धरती पे चलता पाँव से बस
है नहीं मतलब सही से और ग़लत से
मौत देखी है मगर महलों की छत से
रंग देखें हैं सभी, बाग़ों में जाके
पर कभी रोया नहीं मकतल में आके
वो है सिखलाता हमें लिखना कहानी
वो है सिखलाता शऊर-ए-ज़िंदगानी
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