उस काली जगह पर जाकर
छू आए फिर उस मंज़र को
जिस मंज़र को जब भी देखा
जाने क्या दिल पर गुज़री है
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
है साफ़ कहीं है धूल जमी
पर फिर भी ये तन है लरजाँ
जाने क्या इस पर गुज़र गई
हम ख़ाबीदा थे कुछ कुछ तो
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
हर तरफ़ धुआँ सा बिखरा था
हर तरफ़ धुआं सा बिखरा है
उस काली जगह पर जाकर
जाने क्या मंज़र देख लिया
तूफाँ सा दिल से गुज़रा है
कुछ कहर सा सर पर टूटा है
कुछ दर्द भी है, कुछ आंसू भी
कुछ धुआँ भी है और कोहरा भी
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
छू आए फिर उस मंज़र को
जिस मंज़र को जब भी देखा
जाने क्या दिल पर गुज़री है
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
है साफ़ कहीं है धूल जमी
पर फिर भी ये तन है लरजाँ
जाने क्या इस पर गुज़र गई
हम ख़ाबीदा थे कुछ कुछ तो
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
हर तरफ़ धुआँ सा बिखरा था
हर तरफ़ धुआं सा बिखरा है
उस काली जगह पर जाकर
जाने क्या मंज़र देख लिया
तूफाँ सा दिल से गुज़रा है
कुछ कहर सा सर पर टूटा है
कुछ दर्द भी है, कुछ आंसू भी
कुछ धुआँ भी है और कोहरा भी
कुछ याद भी है, कुछ याद नहीं
No comments:
Post a Comment