Friday, December 25, 2015

खुश हैं


बस शहीद ही मर के खुश हैं

बाकी सब तो डर के खुश हैं



हाय ज़माना कैसा आया...

कातिल दुनिया भर के खुश हैं



कोई बात जो इनकी सुन ले

शायर मुजरा करके खुश हैं



फौजी सरहद पर हैं मरते

सांप हमारे घर के खुश हैं



नीचे क़त्ले आम सही पर

आक़ा सब ऊपर के खुश हैं



सब के सब ये भूख के मारे

सामने तेरे दर के खुश हैं



तेरी गली में मौत बिछी है

फिर भी यार गुज़र के खुश हैं

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