Thursday, January 14, 2016

मुर्दे

यहाँ रक्खी हुई है बे-अमाँ जागीर मुर्दों की
ये ख़ाक-ओ-धूल ही थी हर घड़ी तक़दीर मुर्दों की

हम सब हैं घरों में क़ैद और हाथों में मोबा-इल
ख़बर ए हाल अखबारों में, और तस्वीर मुर्दों की

जिन्हें था ख़्वाब ए आज़ादी वो कब के हो गए मुर्दे
और हम हैं ख़ाक पर बैठे, लिए ताबीर मुर्दों की

हमसे पहले जो आए, वो जाने कह गए क्या क्या
हम सब पढ़ रहे हैं आज तक, तहरीर मुर्दों की

है इक तरतीब लाशों की, कि अब हैं हर तरफ़ मुर्दे
कि बोला था कहीं पर सच, थी ये तकसीर मुर्दों की  

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