Friday, November 20, 2015

PRAY FOR PARIS

आँखें खोलो, ख़ून के धब्बे हैं हर दीवार पे
देखो देखो सारी दुनिया चल रही अंगार पे

खूब चिल्लाते हो तुम जब भी फ़िरंगी खूँ बहे...
और ख़ामोशी तुम्हारी उसके हर इक वार पे

फ्रांस के परचम पे तुम अपनी रगड़ते नाक हो
और मुल्कों के नहीं बच्चे भी दिखते दार पे

और करलो कुछ इबादत अमरिकी साहिब की तुम
हाजिरी जाकर लगा लो चौखट-ए-दरबार पे

चुप रहो, कुछ भी न बोलो, हुक्म है साहिब का ये
एक दिन रोओगे सुबहो शाम अपनी हार पे

No comments:

Post a Comment