Friday, March 18, 2016

ये गलियाँ सारी खाकशुदा

वो बाग़ की बातें करती है, फूलों की दुहाई देती है  
हमको इस दुनिया में खाली इक मौत दिखाई देती है  

ये गलियाँ सारी खाकशुदा, ये शहर है डूबा अश्क़ों में 
यहाँ रात, सहर, हर कोने में, इक चीख सुनाई देती है 

जश्न है हक़ में क़ातिल के, मरने वाले की लाश यहाँ 
है मांगती माफ़ी मुंसिफ़ से, दिन रात सफाई देती है  

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